न्यायपालिका में दृष्टिबाधित लोगों पर आदेश लागू करने के लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने दिया चार महीने का समय

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दृष्टिबाधित लोगों को न्यायिक सेवाओं में रोजगार के अवसर प्रदान करने के अपने फैसले को लागू करने के लिए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय को चार महीने का समय दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि दृष्टिबाधित लोगों को न्यायिक सेवाओं में रोजगार के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियमों के उन प्रावधानों को भी रद्द कर दिया, जो दृष्टिबाधित लोगों को न्यायापालिका से जुड़ने से वंचित रखते थे। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने उच्च न्यायालय की ओर से पेश हुए वकील की दलील को भी स्वीकार किया कि राज्य सरकार के परामर्श से नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया जारी है।

पीठ ने कहा, फैसले को लागू करने के लिए समय बढ़ाने की अर्जी दायर की गयी थी, अर्जी स्वीकार की जाती है। अनुपालन और प्रगति रिपोर्ट देने के लिए मामले को चार महीने बाद सूचीबद्ध किया जाता है। शीर्ष अदालत ने तीन मार्च को कुछ राज्यों में न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित और अल्पदृष्टि वाले उम्मीदवारों को आरक्षण देने से इनकार करने से संबंधित याचिकाओं पर फैसला सुनाया, जिनमें एक स्वतः संज्ञान मामला भी शामिल था। न्यायालय ने कहा था, अब समय आ गया है कि हम दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांगता-आधारित भेदभाव के विरुद्ध अधिकार को मौलिक अधिकार के समान दर्जा दें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी भी उम्मीदवार को केवल उसकी दिव्यांगता के कारण वंचित न रहना पड़े।

शीर्ष अदालत ने 122 पृष्ठों के फैसले में कहा, दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा के लिए ‘अनुपयुक्त’ नहीं करार दिया जा सकता और वे न्यायिक सेवा में पदों के लिए चयन प्रक्रिया में भाग लेने के पात्र हैं। न्यायालय ने फैसले में कहा कि मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 के नियम 6ए में किया गया संशोधन संविधान के विरुद्ध है और इसलिए इसे रद्द किया जाता है। नियम में दृष्टिबाधित व्यक्ति शामिल नहीं थे, जो पद के लिए आवेदन करने हेतु शैक्षणिक रूप से योग्य हैं।