पचीस साल से रायगढ़ में भाजपा ने खिला रखा है ‘कमल’

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छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से महत्वपूर्ण सीट रायगढ़ में पिछले 25 साल से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत का ‘कमल’ खिला रखा है और वर्ष 2024 के चुनाव में भी यह सिलसिला बरकरार रखने के लिए कृतसंकल्पित है। कांग्रेस ने इस दफा भाजपा के किले में सेंध लगाने के लिए एक बार फिर राजघराने पर दांव लगाते हुए राजपरिवार से जुड़ी शख्सियत को चुनावी समर में अपना योद्धा बनाया है। वर्ष 1999 से 2014 की अवधि में हुए चार लोकसभा चुनावों में लगातार भाजपा की विजयपताका लहराने वाले वष्णिुदेव साय(वर्तमान में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री) हैं जबकि वर्ष 2019 के चुनाव में गोमती साय ने पार्टी की जीत के सिलसिले का बरकरार रखा।

रायगढ़ लोकसभा सीट के संदर्भ दिलचस्प तथ्य यह भी है कि प्रतिनिधत्वि स्थानीय जिले के नेताओं के बजाय पड़ोसी जिलों के नेता ही करते रहे हैं और पिछले दो दशक से यह सिलसिला अब तक जारी है। भाजपा ने अपनी इस परिपाटी में बदलाव करते हुए आसन्न चुनाव में रायगढ़ जिले में घरघोड़ा के राधेश्याम राठिया को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने इस बार तत्कालीन सारंगढ रियासत के राजा नरेश चंद्र के परिवार से जुड़ी एवं रायगढ़ लोकसभा की सांसद रही पुष्पा देवी की छोटी बहन डॉ. मेनका देवी सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। राजा-महाराजाओं का रियासत रहे रायगढ़ के राजपरिवार के सदस्यों की महत्वपूर्ण राजनीतिक भागीदारी भी रही है। सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र कुछ दिनों तक अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और उनकी पुत्री पुष्पा देवी सिंह ने कांग्रेस की ओर से तीन बार रायगढ़ लोकसभा का प्रतिनिधत्वि किया था। राजपरिवार की राजनीतिक भागीदारी में जशपुर के राजा दिलीप सिंह जूदेव के परिवार का भी नाम उल्लेखनीय है।

दिवंगत नेता श्री जूदेव के भतीजे रणविजय सिंह जूदेव वर्तमान में भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं । छत्तीसगढ़ की संस्कृतिधानी माने जाने वाला रायगढ़ 1952 से 1961 तक लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तत्वि में नहीं था । वर्ष 1962 में यहां पहला आम चुनाव हुआ , जिसमें अखिल भारतीय रामराज्य परिषद के उम्मीदवार श्री विजयभूषण सिंहदेव नर्विाचित हुए। इसके बाद वर्ष 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपनी जड़ें जमाई और सुश्री रजनी देवी ने चुनाव जीता। श्री उम्मेद सिंह राठिया ने 1971 का चुनाव जीतकर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा । आपातकाल विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी का अभ्युदय हुआ और 1977 के आम चुनाव में इसके उम्मीदवार नरहरि प्रसाद ने चुनाव जीत लिया। अस्सी और नब्बे के दशक में हुए चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल एक के बाद एक जीत-हार का स्वाद चखते रहे । वर्ष 1980 में कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह और 1989 में भाजपा के नंदकुमार साय ने चुनाव जीता। सुश्री पुष्पा और श्री साय ने क्रमशः 1991 और 1996 के आम चुनाव में जीत हासिल किए।

वर्ष 1998 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजीत जोगी ने रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सेंध लगाई और चुनाव जीता। इसके एक साल बाद ही फिर चुनाव हुए और तब भाजपा ने श्री वष्णिुदेव साय को चुनाव मैदान में उतारा । श्री साय ने इस चुनाव में रायगढ़ सीट एक बार फिर भाजपा की झोली में डाल दी। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वर्ष 2004 , 2009 , 2014 और 2019 में चार आम चुनाव हुए और इसके परिणाम भी भाजपा के ही पक्ष में गये । ऐतिहासिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के जशपुर और पत्थलगांव का एक अहम स्थान है। जशपुर जिले के कुनकुरी में ईसाई धर्मावलंबियों का एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च हैं । इसके साथ ही यहां सुरम्य पहाड़ियों और घाटियों के बीच स्थित पंडरापाठा को छत्तीसगढ़ का मसूरी भी कहा जाता है। पत्थलगांव एक बहुत बड़ा टमाटर उत्पादक क्षेत्र है, जहां से देश के विभन्नि हस्सिों में टमाटर का नर्यिात किया जाता है। इसके बावजूद यहां के टमाटर उत्पादक किसानों को फसल का समुचित मूल्य न मिल पाने के कारण उनकी माली हालत दयनीय है। जिंदल स्ट्रीप आयरन प्लांट तथा उद्योगों की वजह से रायगढ़ को औद्योगिक नगरी का भी दर्जा है ।

छत्तीसगढ़ के कोरबा से रायगढ़ होते हुए झारखंड के रांची तक रेलमार्ग क्षेत्र के वाशिंदों की प्रमुख मांग है। प्रस्तावित रेलमार्ग के लिए कई बार सर्वे के बाद भी इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं किया जा सका है। वर्तमान में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें है जिनमें छह सुरक्षित और दो सामान्य सीट है। विधानसभा सीटों में जशपुर, कुनकुरी , पत्थलगांव, लैलूंगा, सारंगढ़ और धर्मजयगढ़ (सभी सुरक्षित) तथा रायगढ़ और खरसिया(दोनों सामान्य) शामिल है। इनमें जशपुर , कुनकुरी ,पत्थलगांव और रायगढ़ सीट में भाजपा तथा लैलूंगा , सारंगढ़ , धर्मजयगढ़ एवं खरसिया में कांग्रेस का कब्जा है।

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