पाटन (छत्तीसगढ़)। पाटन में एक धूलभरी सड़क की मरम्मत की जा रही है, जिसके किनारे एक दीवार पर लिखा है, इस बार काका पर भतीजा भारी। यह नारा इस सीट पर होने वाले रोमांचक मुकाबले का सार बयां कर रहा है, जहां से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधायक हैं। दुर्ग जिले से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद विजय बघेल जिले की पाटन सीट पर मुख्यमंत्री के सामने हैं। हालांकि, वह पहली बार उनके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। विजय बघेल (64) मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (62) के दूर के भतीजे हैं। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की राज्य इकाई के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के बेटे अमित जोगी काका और भतीजे की “परिवारवादी” राजनीति के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं, जिससे इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
अमित जोगी ने एक जनसभा में कहा, अब तक (बघेल) परिवार का कोई न कोई यहां से जीतता रहा है। आम आदमी पार्टी (आप) के अमित कुमार हिरवानी समेत कुल 16 उम्मीदवार पाटन में मैदान में हैं, जहां 17 नवंबर को दूसरे और आखिरी चरण में 69 अन्य सीट के साथ मतदान होगा। कांग्रेस के कृषि ऋण माफी और धान की कीमत 3,200 रुपये प्रति क्विंटल के वादे की काट के तौर पर विजय बघेल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा किसानों के लिए किए गए काम गिनाकर वोट मांग रहे हैं। विजय बघेल और जोगी ने मुख्यमंत्री पर राज्य में शराब की दुकानों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। विजय बघेल ने अपने चुनावी भाषण में कहा, मोदी जी किसानों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं और उन्हें मुफ़्त की चीजों के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहने देना चाहते। भूपेश बघेल 1993 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जब यह सीट मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करती थी। हर बार उन्होंने अपना रिकॉर्ड बेहतर ही किया है।
साल 2018 में, भूपेश बघेल ने 27,477 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। साल 2000 में मध्य प्रदेश को विभाजित कर छत्तीसगढ़ का गठन किया गया था। विजय बघेल अपनी कार में ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, “2000 में हम अलग हो गए। 2018 में कांग्रेस की जीत और राज्य सरकार के चार मंत्रियों के दुर्ग जिले की सीटों से विधायक होने बाद भी 2019 के आम चुनावों में मुझे दुर्ग जिले से तीन लाख से अधिक (वोट) की बढ़त मिली। अकेले पाटन (मुख्यमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र) में, मेरी बढ़त 30,000 थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में विजय बघेल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और कांग्रेस उम्मीदवार को 3.91 लाख से अधिक मतों के भारी अंतर से हराया था।
खारुन नदी पाटन और राजधानी रायपुर को अलग करती है। पाटन शहर में ऐसा आभास नहीं होता कि इसका प्रतिनिधित्व पांच बार से मुख्यमंत्री करते आए हैं, जैसे कि महाराष्ट्र में पवार के गढ़ बारामती में होता है। पाटन की सड़कें तारकोल से बनी हैं। मुख्य बाज़ार में ऐसी ही हलचल है, जैसी किसी छोटे से गांव या कस्बे में होती है। जैसे ही कोई पाटन और यहां तक कि पड़ोसी गांवों में प्रवेश करता है, कटाई के इंतजार में खड़ीं धान की फसलें यह संकेत देती हैं कि यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि करते हैं।
अपने घर के बाहर बैठे एक व्यक्ति ने कहा, “यहां कोई समस्या नहीं है। हमारे पास यहां सबकुछ है। हालांकि, उनके घर के बाहर की सड़क को मरम्मत की जरूरत है। भूपेश बघेल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में उनके गढ़ में कुछ खास चर्चा सुनने को नहीं मिली। ढाबे पर काम करने वाले अखरागांव के निवासी गिरीश कुमार ने कहा कि वह मुख्यमंत्री का समर्थन करते हैं। लाल कुंवर सोहरी नामक व्यक्ति के लिए यह महत्व नहीं रखता कि कौन चुनाव जीतेगा, बल्कि वह इस आधार पर वोट देंगे कि कौन क्या देगा। आटे की चक्की चलाने वाले सोहरी के पास चार एकड़ भूमि है, जिसपर वह धान की खेती करते हैं। उन्होंने कहा, “हर कोई वही करता है, जो वह चाहता है। लेकिन मैं किसी ऐसे व्यक्ति को वोट देना चाहूंगा, जो (कृषि) कर्ज माफ करेगा। बहरहाल, 17 नवंबर को चौथी बार चाचा-भतीजे का आमना-सामना होने पर यह देखना होगा कि क्या भतीजा दूसरी बार चाचा को पटखनी देता है या चाचा अपने चुनावी रिकॉर्ड को पहले से भी ज्यादा बेहतर बनाते हैं।