छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने झीरम घाटी नक्सली हमले की दसवीं बरसी पर सवाल किया कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की अंतिम रिपोर्ट से माओवादी नेता रमन्ना और गणपति के नाम क्यों हटाए गए। बस्तर में 25 मई, 2013 को हुए नक्सली हमले में मारे गए कांग्रेस नेताओं और लोगों की याद में होने वाले कार्यक्रम के लिए जगदलपुर रवाना होने से पहले बृहस्पतिवार को संवाददाताओं से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा की अगुवाई वाले न्यायिक जांच आयोग ने राज्य सरकार के बजाय राजभवन को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
बघेल ने कहा, सभी को झीरम घाटी घटना के बारे में याद है। इस घटना से पूरा देश दहल गया था, क्योंकि इतने वरिष्ठ राजनेताओं का नरसंहार विश्व की राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ है। इसी कारण से तत्कालीन संप्रग सरकार ने एनआईए जांच की घोषणा की थी तथा उस समय राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। एनआईए की जांच भी शुरू हुई थी। मुख्यमंत्री ने कहा, ”एनआईए की जांच शुरू हुई और उस समय जो प्राथमिकी दर्ज की गई, उसमें व्यापक षड्यंत्र को ध्यान में रखते हुए नक्सली नेता रमन्ना और गणपति के नाम का उल्लेख था। अगस्त 2014 तक गणपति और रमन्ना का नाम था। उन्होंने दावा किया, इस बीच में गणपति और रमन्ना की संपत्ति कुर्क करने का आदेश भी हुआ। जब सितंबर 2014 में एनआईए ने प्रारंभिक रिपोर्ट अदालत में पेश की, तो उसमें आश्चर्यजनक ढंग से रमन्ना और गणपति का नाम नहीं था। दाखिल की गई अंतिम रिपोर्ट में भी रमन्ना और गणपति का नाम नहीं था।
बघेल ने कहा, सवाल इस बात का है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने रमन्ना और गणपति को क्यों बचाया। उनसे पूछताछ क्यों नहीं की गई। यदि प्राथमिकी में किसी का नाम दर्ज हो गया तो वह हटता नहीं है। भारतीय जनता पार्टी बताए उनका नाम क्यों हटाया गया और उन्हें क्यों बचाना चाहते हैं। उद्देश्य क्या था। मुख्यमंत्री ने कहा, व्यापक षड्यंत्र को ध्यान में रखकर इस मामले की जांच की जा रही थी। जैसे ही केंद्र से संप्रग की सरकार हटी और राजग की सरकार आने पर मोदी जी प्रधानमंत्री बने, इस घटना को दंडकारण्य कमेटी का ही का काम बताकर जांच खत्म कर दी गई।
बघेल ने आरोप लगाया, भारतीय जनता पार्टी लगातार जांच में बाधा उत्पन्न कर रही है। कई बार केंद्रीय गृह मंत्रालय और एनआईए को इस संबंध में पत्र लिखा गया है लेकिन जांच आगे नहीं बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि 25 मई 2013 को बस्तर के झीरम घाटी में एक नक्सली हमले में प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के तत्कालीन अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा, विधायक उदय मुदलियार और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित 29 लोग मारे गए थे। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी की परिवर्तन रैली से लौट रहे थे तब उनके काफिले पर हमला किया गया था।