अभिषेक उपाध्याय। छत्तीसगढ़ में ननों की गिरफ्तारी ने राज्य की राजनीति, समाज और प्रशासनिक तंत्र — तीनों स्तरों पर गहरी हलचल पैदा कर दी है। यह घटना केवल एक कानून-व्यवस्था का मामला नहीं रह गई है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सामाजिक सौहार्द से जुड़ा बड़ा मुद्दा बन गई है।
घटना के अनुसार, कुछ ननों को धार्मिक रूपांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पुलिस का दावा है कि शिकायतों के आधार पर कार्रवाई की गई, जबकि चर्च संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह गिरफ्तारी बिना ठोस सबूतों के और राजनीतिक दबाव में की गई है। इससे अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा की भावना गहराई है।
राजनीतिक रूप से भी यह मामला काफी संवेदनशील हो गया है। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है और राज्य में धर्म आधारित तनाव को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं सरकार का कहना है कि वह केवल कानून के दायरे में काम कर रही है और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया है।
इस गिरफ्तारी का असर राज्य की छवि पर भी पड़ा है। छत्तीसगढ़, जो अब तक सामाजिक सौहार्द और आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता था, वहां अब धार्मिक तनाव की खबरें अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जा रही हैं। चर्च संगठन और मानवाधिकार समूह इस घटना को संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं।
कुल मिलाकर, ननों की गिरफ्तारी ने न केवल प्रशासनिक और राजनीतिक बहस को जन्म दिया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या देश में धार्मिक स्वतंत्रता वास्तव में सुरक्षित है। आने वाले दिनों में इस मामले की दिशा राज्य की राजनीतिक तापमान और सामुदायिक रिश्तों को गहराई से प्रभावित कर सकती है।





