अभिषेक उपाध्याय। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेश बघेल पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह कार्रवाई न केवल एक व्यक्ति के खिलाफ जांच के रूप में देखी जा रही है, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी गहरे हैं।
ईडी ने बघेल पर कथित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में पूछताछ तेज की है। बताया जा रहा है कि जांच एजेंसी को कुछ ऐसे दस्तावेज और लेन-देन के सबूत मिले हैं, जो कोयला परिवहन, शराब वितरण और अन्य सरकारी ठेकों से जुड़े हैं। बघेल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि यह सब “राजनीतिक प्रतिशोध” की कार्रवाई है और केंद्र की भाजपा सरकार विरोधी नेताओं को निशाना बना रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बघेल पर ईडी की जांच, कांग्रेस को कमजोर करने की एक रणनीतिक कवायद हो सकती है, खासकर तब जब राज्य में पार्टी अपनी जमीन बचाने की कोशिश कर रही है। बघेल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रहे हैं और भाजपा के लिए वे हमेशा चुनौती बने रहे हैं।
इस कार्रवाई के राजनीतिक मायने यह भी हैं कि आगामी चुनावों से पहले विपक्षी नेताओं पर दबाव बनाया जा सके। वहीं कांग्रेस इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं के दुरुपयोग के तौर पर देख रही है।
कुल मिलाकर, भूपेश बघेल पर ईडी की कार्रवाई सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में शक्ति संतुलन और केंद्र-राज्य संबंधों की नई परिभाषा भी तय कर सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मामला राजनीतिक गति पकड़ता है या वास्तव में कानूनी मोड़ लेता है।