राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव में दिखा जनजातियों की समृद्ध संस्कृति, कला, परम्परा का अनूठा संगम

0
188

रायपुर। राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव के अवसर पर रायपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडीटोरियम में 19 अप्रैल मंगलवार से तीन दिवसीय हस्त कला प्रदर्शनी का आयोजन शुरू हो गया है। यहां विभिन्न विभागों और जनजातीय समूहों के 29 स्टॉल लगाए गए हैं। यहां जनजातियों के खान-पान, आभूषणों सहित उनके रहन-सहन के तरीकों को जानने लोग आकर्षित हो रहे हैं। यहां लोगों में जनजातियों की संस्कृति के प्रति उत्सुकता के साथ बस्तर की खास चापड़ा चटनी, महुआ लड्डू और पेज का स्वाद लेने की भी बहुत ललक दिखाई दे रही है। साथ ही नई पीढ़ी भी सदियों पुरानी परम्परा और संस्कृति को जानने और उससे जुड़ने के लिए उत्साहित दिख रही है।

आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान छत्तीसगढ़ और भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय के सहयोग से हस्तकला प्रदेर्शनी सह विक्रय का आयोजन किया गया है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में मौजूद वनौषधियों से आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाए गए हर्बल उत्पादों के साथ विभिन्न औषधीय पौधों का प्रदर्शन भी प्रदर्शनी में किया गया है। कोसा कला की नायाब कारीगरी भी प्रदर्शनी में दिखाई दी है। यहां जनजातियों के नंगाड़ा, दफड़ी, मांदर जैसे वाद्य यंत्र, ऐठी, पहुंची, खिनवा, पटा जैसे आभूषण, तुमा और खाना बनाने के प्राचीन बर्तन और औजारों, कपड़ों का प्रदर्शन भी किया गया है।

जनजाति व्यंजनों के स्वाद ने लोगों का मोहा मन

बस्तर से आए बालमती बघेल, शांता नाग और गंगाराम कश्यप ने अपने स्टॉल में राजधानी रायपुर में लोगों को जंगल के खान-पान के स्वाद से परिचय करा रहे हैं। यहां पुरानी के साथ नई पीढ़ी भी बस्तरिया डोडा (भोजन) के प्रति आकर्षित दिखाई दे रहा है। यहां लांदा, माड़िया पेज,तीखुर का शर्बत, चापड़ा चटनी, महुआ लड्डू का लोगों ने खूब स्वाद लिया और तारीफ की। इसके साथ ही गढ़ कलेवा के स्टॉल में छत्तीसगढ़िया व्यंजन ठेठरी, अनरसा, पिड़िया, लाडू जैसे स्वाद के खजाने रखे गए हैं।

प्राचीन कला और आभूषण भी अब फैशन में

विलुप्तप्राय जनजातीय आभूषणों के हाटुम में सुश्री भेनु ठाकुर ने बताया कि बटकी, खिनवा, सूता जैसे प्राचीन आभूषण नई पीढ़ी ने पहनना बंद कर दिये थे। प्रदर्शनी के माध्यम से उन्हें इन गहनों के फैशन ट्रेंड के बारे में बताने के साथ हल्के वजन के गहने उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्हें बताया जा रहा है कि पुराने गहने मॉडर्न फैशन में भी ट्रेंडिंग है,इससे नई पीढ़ी का रुझान भी अपनी प्राचीन कला के प्रति बढ़ा है और वह अपनी संस्कृति और कला से जुड़ने लगे हैं। स्टॉल में घोटुल में बनाए गए कलगी, झलिंग, फरसा, तुमड़ी, फुंदरा, पनिया (बांस की कंघी) का भी प्रदर्शन किया गया है।

नक्सल प्रभावित वनवासियों में अपने गांव लौटने की आस

नारायणपुर से आई अबूझमाड़िया सीताबाई सलाम और मालेबाई वरदा ने बताया कि घुर नक्सल प्रभावित गांव से पलायन के बाद राज्य सरकार ने उन्हें बांस का सामान बनाने की ट्रेनिंग दी है। अब तक वह चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र में जाकर सामानों की बिक्री कर चुकी हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि एक दिन वो या उनके बच्चे अपने गांव और खेतों तक फिर लौटेंगे।

समय के साथ प्राचीन कला में हो रहा नवाचार

आदिवासी विकास विभाग द्वारा लगाए गए स्टॉल में रायगढ़ से आए अजय कुमार सिदार ने बताया कि समय के साथ ढोकरा शिल्प कला में भी नवाचार आया है। अब लोगों की मांग के अनुसार लाइट यूटिलिटी आइटम भी बनने लगे हैं।

माटी कला के प्रति लोगों का बढ़ा रूझान

प्रदर्शनी में माटी कला बोर्ड द्वारा मिट्टी के बर्तनों का स्टॉल भी लगया गया है। स्टॉल में बिहारी लाल मलिक ने बताया कि मिट्टी के बर्तनों का दुष्प्रभाव न होने के कारण इनकी अच्छी मांग है,जिससे कुम्हारों को भी अच्छी आय हो रही है।

अनाज की आकर्षक चित्रकला का प्रदर्शन

प्रदर्शनी में अनाज से बनी सुंदर पेंटिंग का भी स्टॉल लगा है। धान, मक्का, चावल, मूंग जैसे विभिन्न अनाजों के उपयोग से राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके, महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और भगवान की सुंदर पेंटिंग बनाई गई है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here